पुस्तक-चर्चाविमर्शसाहित्य

आनन्दमय जीवन का रहस्य समझाती किताब

सन् 1997 में जब यह किताब छपी तो इसने पूरी दुनिया में धूम मचा दी। लाखों लोगों ने इसे पढ़ा और अपनी ज़िन्दगी में कुछ अच्छा जुड़ते हुए महसूस किया। यह किताब हमें उत्साह, सन्तुलन, समृद्धि और आनन्द से जीने का हौसला देती है। एक ख़ास बात यह है कि जहाँ सकारात्मक सोच पर लिखी गई ज़्यादातर लोकप्रिय किताबों के सन्दर्भ विदेशी हैं, वहीं कनाडा में जन्मे भारतीय मूल के माता-पिता की सन्तान रोबिन शर्मा ने अपनी इस कृति के ज़रिये भारतीय संस्कृति का मस्तक ऊँचा किया है।

इस संसार में कौन होगा, जो कामयाबी के अपने सपनों को पूरा होते नहीं देखना चाहेगा? कौन ऐसा होगा, जो नहीं चाहेगा कि उसकी तकदीर उसकी अपनी मुट्ठी में हो? कौन होगा, जो नहीं चाहेगा कि उसका मन उसकी मर्ज़ी से चलता हो?

दरअसल, हम सब चाहते हैं कि ख़ुशियाँ हमारे पास हों, हम समृद्ध हों और अन्ततः हमारी ज़िन्दगी सार्थकता से भरी हुई हो। तनाव भरे इस दौर में सवाल स्वाभाविक है कि क्या सचमुच ऐसा सम्भव है? अगर जवाब आए कि इसे ख़याली पुलाव न समझें…हाँ, यह सम्भव है, तो सबसे सहज सवाल यह भी उभरेगा ही कि—कैसे?

इस ‘कैसे’ का ही रोचक जवाब दिया है एक अद्भुत कहानी के माध्यम से प्रख्यात प्रेरक वक्ता रोबिन शर्मा ने अपनी बेस्ट सेलर रही किताब ‘द मॉङ्क हू सोल्ड हिज़ फेरारी’ में। सन् 1997 में जब यह किताब छपी तो इसने पूरी दुनिया में धूम मचा दी। लाखों लोगों ने इसे पढ़ा और अपनी ज़िन्दगी में कुछ अच्छा जुड़ते हुए महसूस किया। यह किताब हमें उत्साह, सन्तुलन, समृद्धि और आनन्द से जीने का हौसला देती है। एक ख़ास बात यह है कि जहाँ सकारात्मक सोच पर लिखी गई ज़्यादातर लोकप्रिय किताबों के सन्दर्भ विदेशी हैं, वहीं कनाडा में जन्मे भारतीय मूल के माता-पिता की सन्तान रोबिन शर्मा ने अपनी इस कृति के ज़रिये भारतीय संस्कृति का मस्तक ऊँचा किया है। ‘द मॉङ्क हू सोल्ड हिज़ फेरारी’ का नायक जीवन की उलझनों को सुलझाने की उम्मीद लेकर भारत का रुख़ करता है और अन्ततः कामयाब होकर लौटता है।

पूरी कहानी क्या है और इसकी सीख क्या है, आइए सङ्क्षेप में समझने की कोशिश करते हैं।

जूलियन मेंटले हार्वर्ड का पढ़ा कामयाबी के शिखर पर खड़ा वकील था। उसने दिन-रात मेहनत करके यह मुकाम हासिल किया था। विंस्टन चर्चिल के इस कथन का अनुकरण उसने पूरी लगन से किया था—

‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि आज हम अपने भाग्य के निर्माता हैं। जो काम हमारे सामने है, वह हमारी शक्ति से परे नहीं है, तथा इसको पूरा करने के लिए जो कष्ट सहना पड़ेगा और जो परिश्रम करना पड़ेगा, वह भी हमारी सहनशक्ति से अधिक नहीं है। जब तक हमें अपने प्रयोजन और जीतने की अजेय इच्छाशक्ति पर विश्वास है, सफलता हमसे दूर नहीं रह सकती।’’

और सचमुच जूलियन ने इसे अपने जीवन में चरितार्थ किया। ऐसा क्या हो सकता है, जो एक कामयाब व्यक्ति के पास होना चाहिए और उसके पास न हो। कोई भी महँगी से महँगी चीज़ उसके लिए अनुपलब्ध नहीं थी। पन्द्रह साल की कड़ी मेहनत के बाद उसने वैभवपूर्ण ज़िन्दगी जीने के लिए ज़रूरी हर चीज़ हासिल कर ली थी। मानी हुई हस्तियों के पड़ोस में एक शानदार बँगला, एक प्राइवेट जेट, उष्णकटिबन्धीय द्वीप पर गर्मियों के लिए घर और उसकी बेहद प्रिय बहुमूल्य लाल रङ्ग की चमकती फेरारी।

इतना सब कुछ होते हुए भी जूलियन की ज़िन्दगी से सुकून कहीं ग़ायब था। उसके सबसे क़रीबी सहयोगी जॉन को साफ़ एहसास हो रहा था कि जूलियन मानसिक और शारीरिक स्तर पर जैसे निरन्तर रसातल में जा रहा हो। तमाम कामयाबियों के बावजूद जैसे उसकी तलाश कुछ और की थी, जो उसे अब तक हासिल नहीं हुई थी। चेहरे पर झुर्रियाँ उभरने लगी थीं और 53 की उम्र में तनावों ने जूलियन को जैसे सत्तर पार अस्सी के आसपास पहुँचा दिया था।

आख़िर काम के दबाव में डूबी तनाव भरी ज़िन्दगी का नतीजा निकला। एक दिन बहस के दौरान भरी अदालत में जूलियन अचानक ज़मीन पर गिरा और पसीने से तर-ब-तर हो किसी अबोध शिशु की तरह काँपने लगा। प्रसिद्धि के शिखर पर बैठा वकील गम्भीर बीमारी की गिरफ़्त में था। आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया। पता चला कि उसे गम्भीर रूप से दिल का दौरा पड़ा था। जूलियन बच तो गया, पर डॉक्टर ने उसे आख़िरी चेतावनी दी कि या तो वह विधि व्यवसाय छोड़ दे या फिर जीने की आशा। तब उसने अपनी अन्तरात्मा की आवाज़ सुनी और अपनी अन्तर्ज्योति को जगाने का सुनहरा मौक़ा मान जीवन के सच्चे आनन्द की खोज के मार्ग पर चलने का एक अविश्वसनीय-सा फ़ैसला ले लिया। जूलियन ने अपना शानदार बँगला, विमान और निजी टापू बेच दिया। लाल रङ्ग की अपनी प्रिय फेरारी भी। किसी को उसने कोई सूचना नहीं दी। छोटे भाई सरीखे अपने प्रिय मित्र जॉन से भी बात नहीं की। और इसके बाद उसने भारत की ओर क़दम बढ़ा दिए।

तीन साल बाद जब वह वापस लौटा तो एक भारतीय सन्न्यासी के रूप में था। 53 से 56 पर पहुँच चुकी उम्र जैसे अब पैंतीस की लगने लगी थी। अपूर्व ऊर्जा और प्रसन्नता से भरा जूलियन वापसी के बाद सबसे पहले अपने मित्र जॉन के पास ही पहुँचा और उसे अपने कायान्तरण की पूरी कहानी बताई।

भारत की प्राचीन संस्कृति और रहस्यमय परम्पराओं ने जूलियन को सदा से अपनी ओर आकर्षित किया था। उसे लगा कि उसके प्रश्नों के उत्तर भारत की धरती पर ही मिल सकते हैं। उसने भारत के छोटे-छोटे अनगिनत गाँवों की यात्रा की और जाने कितनी परम्पराओं और सांस्कृतिक चिह्नों को आत्मसात् किया। जूलियन गहराइयों से उठी आत्मा की आवाज़ पर अन्तर्ज्योति को पुनर्जीवित करने के लिए और आगे की आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़ा। उसे उन सन्न्यासियों के बारे में पता चला, जिनकी आयु सौ वर्ष से भी ऊपर थी। उसे उन चिरयुवा योगियों के बारे में भी पता चला, जिन्हें साधना और तपस्या से अपने मन पर नियन्त्रण और आध्यात्मिक कला का ज्ञान हो गया था। सात महीने तक इस तरह की यात्रा के बाद जब वह कश्मीर में था तो उसे एक योगी कृष्णन मिले, जिन्होंने भी जूलियन की तरह ही अपनी सारी भौतिक सम्पत्ति त्याग कर सादगी का जीवन अपना लिया था। योगी कृष्णन ने जूलियन को सबसे पहले एक बड़ी सीख दी कि—‘प्रत्येक घटना का कोई मतलब होता है और प्रत्येक विफलता शिक्षाप्रद होती है। प्रत्येक विफलता चाहे वह व्यक्तिगत हो या व्यावसायिक अथवा आध्यात्मिक स्तर की, व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होती है। इससे आन्तरिक उन्नति होती है और अनेक मनोवैज्ञानिक लाभ मिलते हैं। कभी भी अपने अतीत पर पश्चात्ताप न करो, बल्कि इसको गले लगाओ, क्योंकि यह तुम्हारा शिक्षक है।’

योगी कृष्णन ने ही जानकारी दी कि हिमालय की ऊँची पहाड़ियों पर सिवाना नाम का एक रहस्यमय गाँव है, जहाँ के योगियों ने एक ऐसी पद्धति खोज निकाली है, जो किसी के भी जीवन की गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार कर देगी। यह पद्धति मन, शरीर और आत्मा की गुप्त शक्तियों को मुक्त करने के सिद्धान्त पर काम करती है। योगी कृष्ण के मुताबिक लोग उन्हें ‘सिवाना के सन्त’ के नाम से जानते हैं और उन तक आम आदमी का पहुँच पाना बहुत कठिन है। रास्ते का भी किसी को ज़्यादा कुछ पता नहीं है।

बहरहाल, अगले दिन सवेरे सूरज की किरणों ने चमकना शुरू किया तो जूलियन ने भी हिम्मत जुटाई और सिवाना की खोज में चल पड़ा। दुर्गम और रोमांच भरे रास्तों पर भटकते-भटकते आख़िरकार अपूर्व ऊर्जा और यौवन से दैदीप्यमान उस व्यक्ति से उसका सामना हुआ, जो सिवाना का मुखिया था। इस व्यक्ति का नाम था योगी रमन। योगी रमन ने जब जाना कि यह विदेशी यात्री ज्ञान प्राप्ति और जीवन को उन्नत बनाने के प्राचीन सिद्धान्तों को जानने की तीव्र इच्छा रखता है, तो वे उसे अपने साथ सिवाना ले गए। वह एक अद्भुत दुनिया थी। डेढ़ सौ साल की उम्र में भी कोई वृद्ध नहीं दिखाई देता था। हरियाली और फूलों की बस्ती में एकदम सादा और प्रसन्नता से परिपूर्ण जीवन।

योगी रमन ने जीवन को उन्नत बनाने के रहस्यों को समझाने के लिए जूलियन को आँखें बन्द करने को कहा और एक कहानी के दृश्यों को सामने लाने को कहा, जो कुछ यों थी—

तुम एक हरे-भरे भव्य बगीचे में बैठे हो। यह बगीचा ऐसे असाधारण फूलों से भरा हुआ है, जैसे तुमने शायद ही कभी देखे हों। वातावरण में एकदम शान्ति और निस्तब्धता है। इस बगीचे के ऐन्द्रिय सुख का रसपान करो, मानो इस दुनिया में सारे समय तुम्हें इस प्राकृतिक नखलिस्तान का आनन्द लेना है। जब तुम चारों ओर देखोगे तो पाओगे कि इस जादुई बाग के बीचोंबीच छह मञ्ज़िल ऊँचा प्रकाश घर (लाइट हाउस) बना हुआ है। अचानक बगीचे की शान्ति प्रकाश घर के निचले तल के दरवाज़े के खुलने पर चरमराने क तेज़ आवाज़ से भङ्ग होती है। नौ फुट लम्बा और नौ सौ पौण्ड का जापानी सूमो पहलवान दरवाजे से बाहर आता है। वह कभी-कभी बाग के बीचोंबीच घूमता है।

जापानी पहलवान नङ्गा है। वह वस्तुत: पूरी तरह नङ्गा नहीं है। उसने गुलाबी तारों से अपने गुप्त अङ्गों को ढक रखा है। जब यह सूमो पहलवान बाग में घूमना प्रारम्भ करता है, तो उसे एक सोने क चमकदार सुई वाली घड़ी मिलती है, जिसे वर्षों पहले कोई छोड़ गया था। वह इस पर फिसल जाता है और ज़मीन पर भयङ्कर आवाज़ के साथ गिर जाता है। सूमो पहलवान बेहोश हो जाता है और वहाँ शान्त और स्थिर पड़ा रहता है। जब तुम यह सोचने लगते हो कि वह मर चुका है, पहलवान होश में आ जाता है। वह शायद पास में ही खिल रहे गुलाब के पीले फूलों सुगन्ध से चैतन्य होकर जाग जाता है। ऊर्जा प्राप्त करके तेज़ी से अपने पैरों पर उछलता है और सहज भाव से अपने बायीं ओर देखने लगता है। वह जो कुछ देखता है उससे चौंक जाता है। झाड़ियोंें से बाग के किनारे वह एक लम्बा घुमावदार रास्ता देखता है, जो करोड़ों चमकदार हीरों से ढका हुआ है। भीतर से कोई चीज़ जैसे पहलवान को उस रास्ते पर चलने के लिए निर्देश देती है और वह उस रास्ते पर चल देता है। यह रास्ता उसे कभी समाप्त न होनेवाले आनन्द और अनन्त सुख के मार्ग पर ले जाता है।

कहानी साधारण-सी लगती है, पर योगी रमन जब इसमें छिपे सङ्केतों से परदा उठाते हैं, तो जूलियन चमत्कृत हो उठता है और जीवन को उन्नत बनाने के सारे सूत्र स्पष्ट होते चले जाते हैं। इस कहानी में जीवन के सात मूलभूत सिद्धान्त हैं, जो आत्मनेतृत्व, व्यक्तिगत उत्तरदायित्व तथा आध्यात्मिक जागृति की कुञ्जी हैं। बगीचा, प्रकाश घर, सूमो पहलवान, गुलाबी तार, स्टॉप वाच, गुलाब, घुमावदार हीरों वाला रास्ता—ये सातों साङ्केतिक हैं और इन्हीं में जीवन के सात समयातीत सूत्रों का रहस्य छिपा है।

पहला प्रतीक है–एक अत्यन्त साधारण बगीचा।

योगी रमन के बताए साङ्केतिक अर्थ को जॉन को बताते हुए जूलियन कहता है कि इस शिक्षाप्रद कहानी में बगीचा मस्तिष्क का प्रतीक है। यदि तुम अपने मस्तिष्क की देखभाल करोगे, इसे पोषण दोगे, इसे उपजाऊ व सम्पन्न बगीचे की तरह सँवारोगे, तो यह तुम्हारी आशाओं से कहीं अधिक विकसित होगा। लेकिन यदि तुम इसमें जङ्गली घास जमने दोगे, तो तुम्हारे मन की अनन्त शान्ति और गहरी आन्तरिक एकात्मता भी तुमसे सदा दूर भागती रहेगी।…जीवन को पूर्णता से जीने के लिए तुम्हें अपने मन रूपी बगीचे के द्वार पर पहरा देना चाहिए और सिर्फ़ अच्छी सूचनाओं को ही अन्दर जाने देना चाहिए। एक भी नकारात्मक विचार अन्दर न जाने पाए। सिवाना के सन्तों के अनुसार औसतन एक दिन में एक औसत व्यक्ति के मन में साठ हजार विचार आते हैं और उनमें से नब्बे प्रतिशत विचार वही होते हैं, जो एक दिन पहले थे। समझने की बात यह है कि अगर ये विचार नकारात्मक हों तो हमारा हाल क्या होगा। नकारात्मक विचार यानी कचरा…और कचरे की सही जगह डस्टबिन होनी चाहिए, हमारा मस्तिष्क नहीं।

योगी रमन दिमाग़ में सकारात्मक विचार लाने के तीन व्यावहारिक तरीक़े भी बताते हैं। पहला है—द हार्ट ऑफ़ रोज़ेज़। इसके तहत एक शान्त स्थान पर गुलाब के हृदय यानी केन्द्र की ओर टकटकी लगाकर देखना होता है। इस दौरान तमाम नकारात्मक और ध्यान भटकाने वाले विचार भी आएँगे, पर उन पर ध्यान नहीं देना है। शीघ्र ही मस्तिष्क अनुशासित होने लगेगा। दूसरा तरीक़ा है, अपोजीशन थिङ्किङ्ग का। योगी रमन के अनुसार चूँकि हमारे मस्तिष्क में एक समय में सिर्फ़ एक ही विचार रह सकता है, तो जैसे ही मस्तिष्क में कोई नकारात्मक विचार आए तो तुरन्त उसे हटाकर सकारात्मक विचार लाना चाहिए। तीसरा तरीक़ा है, झील के रहस्य का। सिवाना के सन्त इस तरीक़े के अनुसार एक झील के किनारे खड़े होकर पानी में देखते हुए अपनी वह छवि बनाने की कोशिश करते हैं, जैसा वे वास्तव में बनना चाहते हैं। ज़रूरी नहीं कि इसके लिए किसी झील के किनारे ही जाया जाए। किसी शान्त स्थान पर आँखें बन्द करके भी इस अभ्यास को किया जा सकता है। सपनों का यह कल्पना-दर्शन धीरे-धीरे जीवन का असली सत्य बनने लगता है। 

कहानी का दूसरा प्रतीक है—प्रकाश घर यानी लाइट हाउस।

प्रकाश घर उद्देश्यपूर्ण जीवन की याद दिलाने के लिए है। हमें जीवन का स्पष्ट लक्ष्य बनाना चाहिए। जब नकारात्मक विचारों का स्थान सकारात्मक विचार ले लेते हैं, तो हमारा लक्ष्य भी स्पष्ट होने लगता है। लक्ष्य छोटे या बड़े कई तरह के हो सकते हैं, पर हमेशा याद रखना चाहिए कि हज़ारों मील की यात्रा एक क़दम से प्रारम्भ होती है। छोटे-छोटे कामों को ठीक से पूरा करके हम बड़े कामों की बेहतर तैयारी कर सकते हैं। उद्देश्य प्राप्त के लिए योगी रमन पाँच क़दमों की व्याख्या करते हैं।

कहानी का तीसरा प्रतीक है—सूमो पहलवान, जो एक जापानी शब्द काइजन का सङ्केत है। काइजन लगातार ख़ुद के विकास के लिए आगे बढ़ते रहने का नाम है। जब हमने अपने मस्तिष्क रूपी बगीचे में नकारात्मक विचार रूपी खर-पतवार को उगने से रोक लिया है और सकारात्मक उद्देश्य को दर्ज कर लिया है तो अगला क़दम होगा कि हम अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर अपना विकास करें। यह विकास अच्छी पुस्तकों के अध्ययन, नियमित व्यायाम और स्वास्थ्यवर्धक खानपान से हो सकता है। जो लोग कहते हैं कि इन सबके लिए उनके पास समय नहीं है, तो उनके योगी रमन कहते हैं कि यह उसी तरह से है, जैसे कि कोई कहे कि गन्तव्य पर जल्दी पहुँचने के लिए वह गाड़ी चलाने में इतना व्यस्त है कि रास्ते में रुककर पेट्रोल भराने तक की उसे फुरसत नहीं है। आप सोच सकते हैं कि रास्ते में पेट्रोल ख़त्म हो जाए तो यात्रा का क्या हस्र होगा।

योगी रमन की कहानी का चौथा प्रतीक है गुलाबी तारों से बना वह कपड़ा, जो सूमो पहलवान ने अपने गुप्त भाग को ढकने के लिए पहन रखा है। यह आत्म-अनुशासन का प्रतीक है। अब तक के बताए गए सारे तरीक़े बेकार जाएँगे, अगर आत्म-अनुशासन का पालन न किया जाए। आत्म-अनुशासन पाने के तरीक़े को योगी रमन विस्तार से समझाते हैं।

कहानी का पाँचवाँ प्रतीक है–स्टाप वाच।

यह हमारी सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ ‘समय’ का प्रतीक है। निश्चयात्मक सोच, लक्ष्य निर्धारण और आत्म-नियन्त्रण का महत्त्व तभी है, जबकि समय का ध्यान रखा जाए। हिमालय की ऊँचाई पर भी सन्त समय का पूरा ध्यान रखते थे। अपना समय उन कार्यों में लगाना चाहिए, जिससे लक्ष्य प्राप्ति में सहायता मिले। समय का महत्त्व समझाने के लिए योगी रमन 80/20 के सिद्धान्त की व्याख्या करते हैं। योगी रमन कहते हैं कि जो चीज़ें काम की नहीं हैं, उनके लिए ‘न’ कहने का साहस रखना चाहिए। हर दिन इस भाव से जीना चाहिए कि जैसे वह ज़िन्दगी का आख़िरी दिन हो।

कहानी का छठा प्रतीक है—गुलाब।

याद कीजिए कि सूमो पहलवान स्टाप वाच पर फिसलकर गिर जाता है और बेहोश हो जाता है। एक बार लगता है जैसे कि वह मर गया, पर थोड़ी देर बाद गुलाबों की ख़ुशबू से उसकी बेहोशी दूर हो जाती है और वह तरोताज़ा होकर उठ खड़ा होता है। गुलाब के फूल इस बात के प्रतीक हैं कि हमारा अपने आसपास के जीवन को सुधारने में योगदान होना चाहिए। योगी रमन एक चीनी कहावत की याद दिलाते हैं कि जो हाथ तुम्हें गुलाब के फूल प्रदान करते हैं, तो उन हाथों में भी थोड़ी-बहुत ख़ुशबू रह ही जाती है। इसी तरह से जाने-अनजाने अगर हम लोगों की मदद करते हैं तो उसका प्रतिफल किसी-न-किसी रूप में हमारे पास भी लौटकर वापस आता है।

कहानी का सातवाँ प्रतीक है—घुमावदार हीरों से ढका रास्ता। कहानी के अन्त में जब सूमो पूरी ऊर्जा के साथ उठ खड़ा होता है तो उसे हीरों जड़ा एक घुमावदार रास्ता दिखाई देता है, जिस पर वह चल पड़ता है और जो उसे वहाँ ले जाएगा, जहाँ ख़ुशियों का कोई अन्त नहीं। हीरों जड़ा रास्ता दरअसल इस बात का प्रतीक है कि हमें हमेशा वर्तमान में जीने की आदत बनानी चाहिए। वास्तव में आनन्द लक्ष्य तक पहुँचने का नहीं, बल्कि उस यात्रा का है, जो लक्ष्य तक हमें पहुँचाती है। हमें अपनी यात्रा को आनन्दमय बनाना चाहिए। ‘द मॉङ्क हू सोल्ड हिज़ फेरारी’ के नायक की ज़िन्दगी को योगी रमन की इस कहानी ने पूरी तरह बदल दिया। दिलचस्प है कि क़रीब ढाई दशक पहले लिखी गई यह किताब आज भी अपनी प्रासङ्गिकता बनाए हुए सकारात्मक सोच जगाने का स्रोत बनी हुई है।

सन्त समीर

लेखक, पत्रकार, भाषाविद्, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्येता तथा समाजकर्मी।

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