अनायाससंस्मरण

गान्धीवाद का मतलब ‘मारने की शक्ति हासिल करना’!

मीडिया में मौजूद ज़्यादातर गान्धी-विमर्श गान्धी के जीवन से जुड़ी जानकारियाँ देने अथवा यह कह-लिख देने भर तक सीमित रह गया है कि गान्धी आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासङ्गिक हैं। गान्धी की प्रासङ्गिकता का व्यावहारिक धरातल कहाँ हैं, यह चर्चा लगभग ग़ायब है।

मुख्य वक्ता के तौर पर पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय (अजमेर) के ऐतिहासिक महाराणा प्रताप सभागार में जब मैंने अहिंसा, स्वदेशी और मशीनीकरण पर महात्मा गान्धी के विचारों पर अपनी हल्की-फुल्की समझ सामने रखी, तो कई लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ कि क्या सचमुच गान्धीजी अहिंसा और मशीनीकरण पर कुछ ऐसा भी सोचते थे? अच्छा लगा, जब कई श्रोताओं ने कहा कि कई बातें उनके लिए नई थीं।

दिक़्क़त यह है कि आजकल मीडिया से लेकर अकादमियों तक में गान्धी पर पीएचडी कर लेने को ही विशेषज्ञता का पैमाना मान लिया गया है और गान्धी को जीवन में उतारने की कोशिश कर रहे ज़्यादातर लोग परिदृश्य से ग़ायब हैं। गिनती के सिर्फ़ उन कुछ गान्धीजनों को ही हम जान पा रहे हैं, जो किन्हीं वजहों से अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बन गए हैं। वास्तव में अध्ययन से कहीं आगे गान्धी व्यवहार में उतारने और महसूस किए जाने की चीज़ हैं, इसलिए कट-पेस्ट वाली विशेषज्ञता कुछ काम की होते हुए भी बहुत ज़्यादा उम्मीद का कारण नहीं बन सकती। मीडिया में मौजूद ज़्यादातर गान्धी-विमर्श गान्धी के जीवन से जुड़ी जानकारियाँ देने अथवा यह कह-लिख देने भर तक सीमित रह गया है कि गान्धी आज पहले से कहीं ज़्यादा प्रासङ्गिक हैं। गान्धी की प्रासङ्गिकता का व्यावहारिक धरातल कहाँ हैं, यह चर्चा लगभग ग़ायब है। ऐसे में मुझे लगा कि कुछ व्यावहारिक बातें की जानी चाहिए।

गान्धीजी ने कभी कहा था कि भारत को हर हाल में मारने की शक्ति हासिल करनी होगी..अहिंसा वीरों का भूषण है कायरों का नहीं। पूरा बयान लिखूँ तो तमाम लोगों के लिए हतप्रभ हो जाने जैसी बात होगी। मशीनीकरण, औद्योगीकरण पर भी बात ऐसी ही है। उस सन्दर्भ का मर्म समझिए, जब गान्धी ने कहा—मैं चरख़े में आग लगा दूँ। असल में गान्धी की अहिंसा और उनके मशीनीकरण को हम अक्सर एकतरफ़ा तरीक़े से समझने की कोशिश करते हैं, इसलिए कुछ प्रचलित उद्धरणों में फँसकर रह जाते हैं। गान्धी की अहिंसा को समझने के लिए देश भर के विभिन्न आश्रमों में उनकी मौजूदगी में घटी घटनाओं और उस वक़्त उनके सुझाए समाधानों को समझना काम का हो सकता है। गान्धी का चरख़ा भी सामान्य चरख़ा नहीं है, उसकी प्रतीकात्मकता गहरी है। गान्धी ने सन् 1919 में ‘यङ्ग इण्डिया’ में लिखा—“देश में मिल उद्योग और करघा, दोनों के लिए गुञ्जाइश है। इसलिए चरख़ों और करघों के साथ मिलों की सङ्ख्या भी बढ़ने दीजिए।…सवाल मिलों या मशीनों के विरोध करने का नहीं है। सवाल यह है कि हमारे देश के लिए सबसे अधिक उपयुक्त क्या है? रस्किन के शब्दों में मैं पूछता हूँ—क्या ये मशीनें ऐसी होंगी कि एक मिनट में लाखों व्यक्तियों को ध्वस्त कर दें या ऐसी होंगी कि बञ्जर भूमि को कृषि-योग्य उपजाऊ बना दें?”

गान्धी की तकनीकी दृष्टि चरख़े को तकनीक की ऊँचाई के चरम पर ले जाने को व्यग्र है। उनकी तकनीकी समझ में न चाँद और मङ्गल पर जाना समस्या है और न ही बड़ी मशीन बनाना। शर्त इतनी-सी है कि मशीन आमजन की ज़िन्दगी में सुकून पैदा करने वाली होनी चाहिए और ऐसी हो कि लोगों को बेकार न बनाए या शोषण का माध्यम न बने, बल्कि शोषण की स्थितियों को समाप्त करने वाली हो। गान्धी जब छोटी मशीनों और विकेन्द्रित व्यवस्था की बात करते हैं, तो यह भी देखना चाहिए कि वे किन स्थितियों के लिए बड़ी मशीनों और केन्द्रित उपक्रमों की ज़रूरत बताते हैं। गान्धी को समझना कठिन नहीं है। ज़िन्दगी में थोड़ा सहज होने की कोशिश कीजिए, ईमानदारी बरतिए, गान्धी बड़े आराम से दिल की गहराइयों में उतरते चले जाते हैं। दूसरी भाषा में…प्रतिक्रियाओं, आग्रहों से जितना ही आप बाहर आने की कोशिश करते हैं, उतना ही आप गान्धी के नज़दीक पहुँचने लगते हैं। गान्धी के प्रायः सभी आश्रमों में योग के यम-नियमों की तख़्तियाँ लटकी मिल जाएँगी। असल में गान्धीजी ने योग का मर्म समझा था, वे योग के उच्च कोटि के साधक थे। योग है ही—योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः—अर्थात् हर तरह के आग्रहों-दुराग्रहों के पार जाकर निर्मल, निश्छल हो जाना। इस बुनियादी समझ के चलते ही गान्धी के लिए राजनीति, धर्म, समाजसेवा—सब कुछ ईश्वर-प्राप्ति का साधन था। गान्धी को महसूस करने का अर्थ है कि आपके भीतर सबसे पहला परिवर्तन यह होगा कि आप स्वयं किसी के साथ अन्याय नहीं करेंगे, कर ही नहीं पाएँगे…नफ़रत के भाव तिरोहित होने लगेंगे…और दूसरा परिवर्तन यह होगा कि आप समाज में हो रहे अन्यायों के मूकदर्शक नहीं बने रह सकते। (7 अक्टूबर, 2019)

सन्त समीर

लेखक, पत्रकार, भाषाविद्, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्येता तथा समाजकर्मी।

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