परिचय

सन्त समीर के बारे में

प्रकृति से यायावर सन्त समीर जी की सक्रियता मुख्य रूप से समाजकर्म के क्षेत्र में रही है। हिन्दी भाषा पर केन्द्रित उनकी कुछ चर्चित पुस्तकें हैं; सो, वे एक भाषाविद् के रूप में भी जाने जाते हैं।

सन्त समीर जी सात साल की छोटी उम्र में एक ऐसे हादसे के शिकार हुए, जिसके बाद जीवित बच पाना लगभग नामुमकिन होता है। आश्चर्यजनक रूप से वे बचा लिए गए, पर लम्बे और कठिन इलाज का गम्भीर दुष्प्रभाव हुआ। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों के मुताबिक उनकी जीवन प्रत्याशा अधिकतम तीस वर्ष की वय तक ही हो सकती थी। ऐसी स्थिति में उनकी रुचि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्ययन की ओर गई। उन्होंने अपने ‘कॉम्बिनेशन’ बनाए और यकृत, फेफड़े के अलावा असाध्य मानी जाने वाली मधुमेह तक की तकलीफ़ से पूरी तरह निजात पा ली। चिकित्सा विधियों के अलावा धर्म-संस्कृति और विज्ञान-तकनीकी के भी वे गम्भीर अध्येता रहे हैं।

सन्त समीर उन कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों में से एक हैं, जिन्होंने अन्तरराष्ट्रीय गणित परिषद् के अध्यक्ष रहे स्व. प्रो. बनवारीलाल शर्मा, स्वदेशी के प्रखर प्रवक्ता स्व. राजीव दीक्षित आदि के साथ मिलकर स्वतन्त्र भारत में पहली बार बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में स्वदेशी-स्वावलम्बन का आन्दोलन पुनः शुरू किया। उनके लिखे की अनुगूँज संसद और विधानसभाओं तक भी पहुँची है। नब्बे के दशक की प्रतिष्ठित फ़ीचर सर्विस ‘स्वदेशी संवाद सेवा’ के वे संस्थापक सम्पादक रहे। बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद, वैश्वीकरण, डब्ल्यूटीओ जैसे मुद्दों पर बहस की शुरुआत करने वाली इलाहाबाद से प्रकाशित वैचारिक पत्रिका ‘नई आज़ादी उद्घोष’ के भी सम्पादक और सलाहकार सम्पादक रहे। व्यावसायिक पत्रकारिता के तौर पर ‘जनमोर्चा’, ‘ईएमएस’ न्यूज एजेंसी, क्रॉनिकल समूह, हिन्दुस्तान टाइम्स समूह आदि के साथ जुड़कर काम किया। फिलहाल, नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) स्थित ‘भारतीय जनसञ्चार संस्थान’ (आईआईएमसी) के साथ सम्बद्ध हैं। इसके अलावा विभिन्न जनसङ्गठनों के साथ मिलकर सार्थक सामाजिक बदलाव के लिए वे निरन्तर प्रयासरत हैं।

विशेष :

  • वर्तमान में ‘राइट टू रिजेक्ट’ के रूप में देश की जनता को मतदान के दौरान प्रत्याशियों को ख़ारिज करने का जो अधिकार मिला हुआ है, उसकी भूमिका सबसे पहले सन्त समीर जी ने ही सन्-1990-91 में तैयार की थी। इलाहाबाद में आयोजित एक सभा में उन्होंने जब पहली बार इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए तो देश के कई जनसङ्गठनों ने इसे ज़रूरी मुद्दा मानकर हस्ताक्षर अभियान चलाया और कालान्तर में कुछ सङ्गठन इसे देश की सर्वोच्च अदालत तक ले गए। फलस्वरूप 26 सितम्बर, 2013 को जनता को इसका अधिकार मिला।
  • ‘साहित्यकारों के तीर्थ में साहित्य का चकलाघर’ (नवभारत टाइम्स, 17 सितम्बर-1994) लेख की चर्चा देश की संसद तथा ‘तोड़ना ही होगा सरकारी जुए का तिलिस्म’ की चर्चा उत्तर प्रदेश विधानसभा तक पहुँची। ये लेख उस दौर में अश्लील पत्र-पत्रिकाओं और लाटरी पर पाबन्दी का कारण बने।
  • विवादास्पद ‘रामसेतु’ का मुद्दा सन्त समीर जी के ‘अमर उजाला’ हिन्दी दैनिक में 9 फरवरी-2007 को छपे ‘सत्रह लाख साल पुराने पुल पर हथौड़ा’ (‘नष्ट होते इतिहास के मूकदर्शक’ लेख का अंश) शीर्षक आलेख के परिणामस्वरूप पहली बार चर्चा में आया।
  • सन्-2012 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से ठीक पहले सन्त समीर जी का ‘आम आदमी पार्टी के विधायकों के नाम खुला ख़त’ इतने बड़े पैमाने पर चर्चित हुआ कि यह हज़ारों लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन का प्रेरक बना। देश के तमाम समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने उस समय इसे अपना मुख्य आलेख बनाकर प्रकाशित किया। उस दौर में इस खुले ख़त को ‘राजनीति की गीता’ तक की सञ्ज्ञा से अभिहित किया गया।
  • सन्त समीर जी ने कोरोना काल में लगभग दो हज़ार मरीज़ों का व्यक्तिगत स्तर पर सफल इलाज किया। उनके वायरल हुए पर्चे से देश भर में कई स्थानों पर लोगों ने चिकित्सा अभियान चलाया, जिसके परिणामस्वरूप लगभग डेढ़-दो लाख लोगों ने घर बैठे अपना इलाज स्वयं किया और सफलतापूर्वक कोविड की परेशानी से बाहर निकल आए। सन्त समीर जी ने अपने सामान्य प्रयोगों से सिद्ध किया कि कोरोना कोई भयावह महामारी नहीं, बल्कि बहुत आसानी से ठीक होने वाली फ्लू जैसी ही एक साधारण बीमारी है। उन्होंने अस्पतालों के ‘प्रिस्क्रिप्शन’ के आधार पर प्रमाणों के साथ यह भी स्पष्ट किया कि कैसे फ़ार्मा और मीडिया की मिलीभगत ने देश की जनता में अनावश्यक रूप से डर फैलाया और डरे हुए लोग ग़लत इलाज के चक्कर में फँसकर मौत के शिकार हुए।

पुस्तक लेखन :

  1. हिन्दी की वर्तनी (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) व प्रभात प्रकाशन (नई दिल्ली)—पुरस्कृत
  2. अच्छी हिन्दी कैसे लिखें (प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली)
  3. सफल लेखन के सूत्र (स्वदेशी संवाद सेवा प्रकाशन, इलाहाबाद)
  4. विलोम कोश (प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली)
  5. साप्ताहिक हिन्दुस्तान : एक अध्ययन (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल)
  6. दैनिक हिन्दुस्तान : एक अध्ययन (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल)
  7. स्वतन्त्र भारत की हिन्दी पत्रकारिता : इलाहाबाद जिला (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल)
  8. पत्रकारिता के युग : निर्माता प्रभाष जोशी (प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली)
  9. स्वदेशी चिकित्सा (प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली)
  10. सौन्दर्य निखार (प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली)

पुरस्कार व सम्मान :

  • नारद सम्मान-2011 (सरोकार की पत्रकारिता के लिए)
  • माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र सङ्ग्रहालय एवं शोध संस्थान-भोपाल द्वारा ‘हिन्दी की वर्तनी’ पुस्तक पर ‘महेश गुप्ता राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’ (सन्-2012)
  • कोरोना काल में विशिष्ट चिकित्सकीय योगदान तथा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर विशिष्ट काम करने के लिए ‘स्वस्थ भारत स्वास्थ्य दूत सम्मान’ (सन् 2022)

सम्पर्क : sampark@santsameer.com

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