वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ और महामारी—तीन
फिलहाल, यहाँ उन कुछ सामान्य उपायों का वर्णन किया जा रहा है, जिन्होंने लाखों लोगों को महामारी से बचाने में मदद की है। मैंने ख़ुद इन उपायों को व्यक्तिगत रूप से हज़ारों लोगों पर आज़माया है और कारगर पाया है। बीमारी का नाम कुछ भी हो, अगर लक्षण इस तरह के हैं, तो ये उपाय काम करेंगे।
- आपके पास कोई दवा न हो, किसी दवा की जानकारी न हो और सङ्क्रमण के शिकार हो गए हों तो स्थिति की गम्भीरता के हिसाब से एक, दो या तीन दिन के उपवास पर आ जाइए। दिन भर गरम पानी पीजिए। मौसमी, सन्तरे का रस पीजिए या सीधे ये फल चूसिए। इन फलों की उपलब्धता न हो तो दिन में कई बार एक-एक गिलास करके नींबू-पानी-शहद लीजिए। उपलब्धता हो तो दिन भर में पाँच-छह गिलास नारियल पानी पीजिए। सामान्य स्थितियों में समस्या इतने भर से क़ाबू में आ जाएगी। बाद में धीरे-धीरे फल, सलाद से शुरू करके ठोस आहार पर आइए। उपवास में यह सावधानी हमेशा बरतनी चाहिए।
- तुलसी, दालचीनी, अदरक या सोंठ, मुलहठी, काली मिर्च और लौङ्ग का काढ़ा बनाकर (चाहें तो गुड़ मिला लें) चाय की तरह दिन में दो-तीन बार पिएँ। इन सारी चीज़ों में श्वसन तन्त्र को बल देने के अद्भुत गुण पाए गए हैं। इस नुस्ख़े को मैं बहुत पहले से बताता रहा हूँ और लोग इससे फ़ायदा भी महसूस करते रहे हैं। बाद में आयुष मन्त्रालय ने भी इस नुस्ख़े को अपनी एडवायजरी में शामिल किया। यह जानना दिलचस्प होगा कि सन् 1918 में जब स्पेनिश फ्लू फैला था तो रोग के प्रसार वाले कुछ इलाक़ों में दालचीनी की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों में किसी को भी सङ्क्रमण नहीं हुआ।
- गिलोय या गुडुची तीनों दोषों, यानी कफ-पित्त-वात से पैदा होने वाले सभी तरह के सामान्य ज्वर को क़ाबू करने के लिए बहुत पुराना आज़माया हुआ उपाय है। इसका काढ़ा बनाकर सवेरे-शाम ले सकते हैं। जब भी लें तो कम-से-कम इक्कीस दिनों तक ज़रूर लें। इक्कीस दिन को कोई अन्धविश्वास न समझें। इसका मज़ेदार विज्ञान है, पर अलग से चर्चा का विषय है।
- श्वसन तन्त्र को मजबूती देने के लिए गरम दूध में हल्दी मिलाकर रात में सोने से पहले पी सकते हैं। इसके बजाय दिन में एकाध बार पानी में थोड़ा-सा हल्दी चूर्ण मिलाकर भी ले सकते हैं।
- एक महत्त्वपूर्ण शोध यह है कि जिसके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर अच्छा होगा, कोरोना वायरस उसको ज़्यादा नुक़सान नहीं पहुँचा पाएगा। ऑक्सीजन का स्तर बरक़रार रखने के लिए सबसे अच्छा तरीक़ा नियमित प्राणायाम करना है। भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम और शीतली-शीतकारी प्राणायाम सवेरे खुले में बैठकर ज़रूर कीजिए। दस-पन्द्रह मिनट से लेकर आधे घण्टे तक कीजिए। सर्दी का समय हो तो शीतली-शीतकारी मत कीजिए।
- सङ्क्रमण से बचने के लिए आर्सेनिक अल्बम-30 (Arsenic Album-30) हफ़्ते भर सवेरे-दोपहर-शाम तीन बार लीजिए, फिर कुछ दिनों तक रोज़ सवेरे दिन में एक बार ले सकते हैं। जो लोग पूरी तरह स्वस्थ हैं, वे केवल तीन दिनों तक दवा ले लेंगे तो उनके शरीर में इतने भर से ही कोरोना-जैसे लक्षणों से लड़ने की इम्युनिटी विकसित हो जाएगी। एकाध महीने बाद चाहें तो इसी तरह तीन दिन फिर से दवा ले सकते हैं। याद रखिए गोलियाँ हों तो दवा जीभ पर रखकर चूसनी है और द्रव रूप हो तो दो-तीन बूँद जीभ पर टपका लेनी है। दवा लेने के आधे घण्टे पहले या आधे घण्टे बाद तक पानी के अलावा कुछ भी खाना-पीना नहीं है। सङ्क्रमण हो गया हो तो भी यह दवा काम आएगी, पर लक्षणों पर ध्यान देना ज़रूरी है। इसके मरीज़ को बार-बार प्यास लगती है, पर घूँट-दो घूँट से ज़्यादा पानी नहीं पीता। घबराहट होती है। पानी पीते ही उल्टी हो जाने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। सूखी खाँसी तो ख़ैर हो ही सकती है। इन लक्षणों के आधार पर दवा लेंगे तो आसानी से ठीक हो जाएँगे।
- कैम्फर-1 एम (Camphora-1M) भी इसी तरह ले सकते हैं। यह भी इम्युनिटी बढ़ाएगी। जिन इलाक़ों में कोरोना मरीज़ों में दस्त लगने के हैजा-जैसे लक्षण हों, वहाँ के लिए यह इलाज में भी रामबाण की तरह असर दिखाएगी। इसके मरीज़ के शरीर की त्वचा ठण्डी महसूस होती है। बावजूद इसके वह खिड़की-दरवाज़े खुले रखना चाहता है, ठण्डी हवा चाहता है।
- एनफ्लूएञ्जीनम-30 (Influenzinum-30) तथा एकोनाइट-30 (Aconite-30) की दो-दो बूँदें जीभ पर टपका लें। दिन में एक बार कई दिनों तक रोज़ ले सकते हैं। केवल चार-छह दिन लेंगे तो भी कोई दिक़्क़त नहीं है। सङ्क्रमण से बचाने के अलावा यह नुस्ख़ा इलाज के समय भी काम आ सकता है। जब भी लगे कि रोग का अचानक आक्रमण हुआ है, सिरदर्द, छींकें, गले में खराश वग़ैरह शुरू हो गए हैं तो किसी भी बीमारी में इस नुस्ख़े को याद कर सकते हैं।
- बुख़ार हो, देर-देर में ठण्डे पानी की प्यास लगे, बिना हिलेडुले चुपचाप लेटे रहने का मन हो, सिरदर्द एक-सा लगातार बना रहे तो ब्रायोनिया-30 (Bryonia-30) चार-चार घण्टे पर लीजिए। तरीक़ा वही है कि गोली हो तो चार-चार गोली जीभ पर रखकर चूसें और द्रव रूप में दवा हो तो दो बूँद जीभ पर टपका लें।
- जब साहस जवाब देने लगे मरीज़ हतोत्साहित होने लगे, कमज़ोरी के साथ कँपकँपी हो, सोते रहने की इच्छा हो और रोगी ऊँघता रहे तो जेल्सीमियम-30 (Gelsemium-30) को याद कीजिए। भय, चिन्ता या हड़बड़ी वग़ैरह के चलते दस्त लगने की प्रकृति हो तो भी जेल्सीमियम काम करेगी, भले ही बीमारी कोई और भी हो। इसकी खाँसी में घड़घड़ाहट होती है। इसका बुख़ार बहुत तेज़ नहीं होता।
- अगर कभी ऐसा लगे कि लक्षण आर्सेनिक के हैं, फिर भी आर्सेनिक से उतना फ़ायदा नहीं मिल रहा तो आप आर्सेनिकम आयोडेटम-6 (Arsenicum Iodatum-6) ले सकते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर आर्सेनिक अल्बम से तीव्र होते हैं। जेल्सीमियम के साथ आर्सेनिकम आयोडेटम (आर्स आयोड) को पर्याय क्रम से देने पर बीमारी और आसानी से क़ाबू में आ सकती है। पर्याय क्रम का मतलब है कि जेल्सीमियम देने के दो घण्टे बाद आर्सेनिकम आयोडेटम दीजिए। अगले दो घण्टे बाद फिर जेल्सीमियम दीजिए।
- अन्त में एक बात पर विशेष ध्यान रखिए। हो सकता है कि कोई मरीज़ मानसिक रूप से इतना हताश हो जाए कि उसके मन में लगातार मर जाने का डर बना रहे। मानसिक लक्षण अगर गहरा हो तो सिर्फ़ इसी आधार पर होम्योपैथी दवा का चुनाव किया जा सकता है। मरने का डर एकोनाइट, आर्सेनिक और जेल्सीमियम तीनों में है। इसके अलावा बाक़ी के लक्षण जिस दवा से ज़्यादा मेल खाएँ, उस दवा को आँख मूँद कर दे दीजिए, चमत्कार हो सकता है।
यों, इन दवाओं के लक्षण सैकड़ों में हैं, पर यहाँ मैंने सिर्फ़ कोरोना में सम्भावित लक्षणों से हिसाब से इनके बारे में बात की है। मुझे लगता है कि इन उपायों को समझदारी से अपनाएँगे तो आपको किसी अस्पताल या डॉक्टर की शरण में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। (समाप्त) (सन्त समीर)