बाँग्ला देश बनाम सेक्युलर सोच
दिलचस्प है कि बाँग्ला देश में हिन्दुओं के साथ जो हो रहा है, उसके ख़िलाफ़ मुसलमानों का एक तबक़ा तो खुलकर बोल रहा है, पर सेक्युलर कहलवाना पसन्द करने वाले हमारे क्रान्तिकारी लोग कुछ नहीं बोल रहे हैं। इन सेक्यूलरों में गान्धीवादियों को भी गिन रहा हूँ, जिनकी बिरादरी में मैं ख़ुद गिना जाता हूँ। यह सब देखकर अपनी उस पुरानी धारणा पर और दृढ़ हो रहा हूँ कि विचारधारा ज़्यादातर मौक़ों पर मानसिक बीमारी में बदल जाती है; और कई बार, विचारधाराएँ और कुछ नहीं बस मानसिक बीमारियाँ भर होती हैं। विचारधारा के वशीभूत हम इनसान से ज़्यादा कुछ और होने लगते हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि अन्याय किसी के भी साथ हो, अन्याय है। देह हिन्दू की हो या मुसलमान की, जिन नियमों पर चलती है, वे प्रकृति प्रदत्त हैं और सार्वभौम हैं। हिन्दू या मुसलमान होना हमारी समझदारी या कि नादानी हो सकती है।