ताँबे वाले पानी से सावधान!
ऐसे लोग बड़ी सङ्ख्या में हैं, जो सवेरे-सवेरे ख़ाली पेट गुनगुने पानी में शहद और नींबू का रस मिलाकर पीते हैं। ये दोनों ही अच्छी बातें हैं, पर यदि आप ताँबे के बर्तन वाले पानी में नींबू का रस मिलाकर पीते हैं तो सावधान हो जाइए। फ़ायदे के साथ-साथ आपको कुछ नुक़सान भी हो सकते हैं।
बड़ी सङ्ख्या में ऐसे लोग हैं, जो ताँबे के लोटे वाला पानी सवेरे-सवेरे पीते हैं, यानी उषःपान वाली दिनचर्या के साथ दिन की शुरुआत करते हैं। ऐसे भी लोग बड़ी सङ्ख्या में हैं, जो सवेरे-सवेरे ख़ाली पेट गुनगुने पानी में शहद और नींबू का रस मिलाकर पीते हैं। ये दोनों ही अच्छी बातें हैं, पर यदि आप ताँबे के बर्तन वाले पानी में नींबू का रस मिलाकर पीते हैं तो सावधान हो जाइए। फ़ायदे के साथ-साथ आपको कुछ नुक़सान भी हो सकते हैं।
समझना आसान है। जो लोग ताँबे का बर्तन प्रयोग में लाते हैं, उन्हें पता होगा कि ताँबे को चमकाने के लिए नींबू का इस्तेमाल किया जाता है। नींबू की प्रतिक्रिया ताँबे के साथ थोड़ी उलटी है। ताँबे के बर्तन में खट्टी चीज़ों को रखने की मनाही यों ही नहीं की गई है। अगर आपको ताम्र पात्र का पानी पीना है तो ज़रूर पीजिए, पर नींबू-शहद वाले पानी को इससे अलग रखिए। जिस पानी में नींबू मिलाना हो, वह ताँबे के बर्तन में रखा हुआ नहीं होना चाहिए। इन दोनों प्रयोगों को साथ-साथ चलाना हो तो कुछ देर के अन्तर से कर सकते हैं।
खान-पान में कई चीज़ों की क्रियाएँ-प्रतिक्रियाएँ हमें खुली आँखों से दिखाई नहीं देतीं, पर इनके अच्छे-बुरे को एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं। बहुत अच्छे से याद नहीं, पर घटना होम्योपैथी के जनक महात्मा हनीमैन या फिर डॉ. हेरिङ्ग के समय की है। एक व्यक्ति ने एक तोता पाल रखा था। वह तोता उसे बहुत प्रिय था, पर अजीब ढङ्ग से तोते के पङ्ख झड़ने लगे थे और वह मरियल-सा बदसूरत हो गया था। तोते का मालिक एक दिन डॉ. हेरिङ्ग के पास तोता लेकर पहुँचा और दुखी मन से अपनी व्यथा सुनाई। डॉ. हेरिङ्ग ने ध्यान से उस पिंजड़े को निहारा, जिसमें तोता बन्द था। पिंजड़े से लेकर तोते के लिए दाना-पानी रखने की कटोरी तक सब कुछ खुले लोहे का बना था। मतलब कि तोते का शरीर पूरे दिन लोहे के सम्पर्क में बना रहता था। हेरिङ्ग को रोग का निदान मिल गया। उन्होंने फ़ेरम मेट दवा की कुछ ख़ुराकें बनाकर दे दीं। कुछ दिनों बाद तोते का मालिक अति प्रसन्न भाव से उनको धन्यवाद देने आया। तोते के शरीर पर हरियाली वापस आ गई थी। असल में तोते के शरीर में लौह तत्त्व की अधिकता (Iron Excess) हो गई थी और उसको एण्टीडोट करने के लिए लोहे से ही बनी होम्योपैथी दवा फ़ेरम मेटालिकम दी गई थी। (सन्त समीर)