तन-मनस्वास्थ्य

सेहत का साथी सङ्गीत

सङ्गीत का इस्तेमाल सेहत के लिए कैसे हो सकता है, इसके लिए यह लेख पढ़ सकते हैं। 27 जनवरी, 2017 के ‘हिन्दुस्तान’ अख़बार में यह प्रकाशित हुआ था। कई गम्भीर बातों को इसमें छोड़ दिया गया है, क्योंकि यह लेख आम पाठकों के लिए है, बुद्धिजीवियों के लिए नहीं। इसी हिसाब से इसे पढ़ें…

सङ्गीत की शक्ति से दीया जलाते तानसेन को तो हममें से किसी ने नहीं देखा, लेकिन सङ्गीत की स्वरलहरियाँ जाने कितनी ज़िन्दगियों के बुझते दीये रौशन कर रही हैं, यह अब साबित होता हुआ हम जरूर देख सकते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में इस तरह के शोध अब अक्सर पढ़ने को मिल जाते हैं कि दुधारू पशुओं को सङ्गीत सुनाया गया तो उनमें दूध की मत्रा बढ़ गई, या कि कुछ फ़सलों की पैदावार पर भी सङ्गीत का अच्छा असर देखा गया। हंस, मुर्गी जैसे पक्षियों की अण्डा देने की क्षमता भी बढ़ती हुई पाई गई है। अन्नामलाई विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्री डॉ. टी. एन. सिंह की टीम ने वनस्पतियों और प्राणियों पर सङ्गीत की ध्वनि तरङ्गों के कई सकारात्मक प्रयोग किए हैं। विदेशों में इस तरह के ख़ूब प्रयोग किए जा रहे हैं। इतिहास की चर्चित घटना है कि महान् सङ्गीतकार पं. ओंकारनाथ ठाकुर ने राग ‘पूरिया’ गाकर इटली के शासक मुसोलिनी को अनिद्रा रोग से मुक्ति दिला दी थी। हमारे समय के प्रसिद्ध शास्त्रीय सङ्गीत साधक पं. जसराज ने भी सङ्गीत चिकित्सा से कई रोगियों को आराम पहुँचाया है। पिछले दिनों की ख़बर है कि जो लोग यातायात के नियमों को तोड़ने की बीमारी से ग्रस्त हैं, दिल्ली सरकार उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए म्यूजिक थेरेपी का सहारा लेगी।

क्या कहता है विज्ञान

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के कई शोधों में यह तथ्य उभर कर सामने आया है कि क़रीब अस्सी फ़ीसद बीमारियों के पीछे कहीं-न-कहीं एक वजह तनाव भी है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मन में तनाव भरा हो तो न्यूरो-एण्डोक्राइनो-इम्यूनोलॉजिकल मार्ग से इसका असर शरीर पर आने ही लगता है। दिल, दिमाग़ से लेकर पूरा नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है। बीमारियाँ पहले से हों तो बढ़ने लगती हैं और न भी हों तो नई बीमारियों का रास्ता खुलने लगता है। शोधों के मुताबिक तनावग्रस्त स्थिति में शरीर में कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के फैलने की गति में भी तेज़ी आ जाती है।

ज़ाहिर-सी बात है कि सेहतमन्द बने रहना है तो तनाव से भी दूर रहना ज़रूरी है और इसका एक बड़ा साधन सङ्गीत हमेशा से रहा है। राजस्थान के जोधपुर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के एक समूह ने अपने शोध में पाया कि सङ्गीत चिकित्सा के प्रभाव से रोगी अपनी चिन्ताओं और दुखों को भूल जाते हैं और जल्दी ठीक होने लगते हैं। नॉर्मन विंसेण्ट पील अमेरिका के मशहूर मनोचिकित्सक और उपदेशक थे। वे मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए सङ्गीत का ख़ूब इस्तेमाल करते थे और इसे अचूक औषधि कहते थे। अमेरिका के सङ्गीत चिकित्सक डॉ. हार्ल्स एस्टले ने क़रीब बीस साल तक रोगियों पर सङ्गीत के प्रभावों का अध्ययन किया और कई रोगों, ख़ासतौर से मानसिक रोगों में दवाओं से भी ज़्यादा उपयोगी सङ्गीत को पाया। भारत के बङ्गलूरु में ‘पावनि’ नाम की एक संस्था सङ्गीत चिकित्सा पर उल्लेखनीय काम करती रही है। उसके निष्कर्षों के मुताबिक सङ्गीत की धुनों से शरीर के चयापचय, जैव प्रक्रियाओं के परिचालन और न्यूरोकेमिकल में विशिष्ट परिवर्तन आता है। सङ्गीत की मधुर ध्वनियों के असर से दिमाग़ आराम महसूस करता है और ब्लड शुगर में कमी आने लगती है। सङ्गीत की तरङ्गें तन्त्रिका तन्त्र और रसायन तन्त्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं और रोग मुक्त होने में मदद करती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि रोज बीस मिनट अपनी पसन्द का सङ्गीत सुनने से कई रोगों में फ़ायदा मिलता है। यों म्यूजिक थेरेपी हिन्दुस्तान में भले अभी बहुत उन्नत दशा में नहीं पहुँच पाई है, पर काम इस पर आज़ादी के पहले से ही शुरू हो गया था। सन् 1938 में डॉ. जैक्सन पाल की एक किताब ‘सङ्गीत चिकित्सा’ लाहौर से छपी थी। इस किताब में उस समय के सङ्गीत चिकित्सा पर हुए कई प्रयोगों का दिलचस्प वर्णन है।

हाल के दिनों में हुए कई शोधों का नतीजा है कि सङ्गीत सुनते समय डोपामाइन तथा एण्ड्रोफिन जैसे हार्मोनों का स्राव शरीर बेहतर ढङ्ग से करने लगता है और व्यक्ति को सुकून का एहसास होता है। तनाव कम होता है, सुरक्षा बोध बढ़ता है। नतीजे इस तरह के भी हैं कि जो लोग सङ्गीत सुनते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और उन्हें अन्य लोगों की तुलना में डॉक्टरों के पास जाने की ज़रूरत कम पड़ती है। जर्मनी में हुए एक रिसर्च के अनुसार पियानो बजाने से नर्वस सिस्टम पर अच्छा प्रभाव तो पड़ता ही है, अँगुलियों का भी बढ़िया व्यायाम होता है। फलस्वरूप लकवा के मरीज़ों को लाभ मिलता है। सेक्सोफ़ोन बजाने से श्वसन तन्त्र मज़बूत होता है और अस्थमा के रोगियों को फ़ायदा पहुँचता है। अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित माउण्ट बेथ इज़रायल हॉस्पिटल के अध्ययन के अनुसार साँस सम्बन्धी रोगों के इलाज में म्यूजिक थेरेपी अद्भुत तरीक़े से कारगर है।

भारत में म्यूजिक थेरेपी

हमारा देश सङ्गीत के मामले में संसार में सबसे समृद्ध है, पर दुर्भाग्य से सङ्गीत चिकित्सा में अभी तक ज़्यादा काम नहीं हो पाया है। आधुनिक मानदण्डों के अनुरूप म्यूजिक थेरेपी पर काम करने वाले संस्थानों में चेन्नई के राग रिसर्च सेंटर का स्थान विशिष्ट है। कई दशक से शास्त्रीय रागों के आधार पर रोगों की चिकित्सा और अनुसन्धान का काम यह केंद्र व्यापक स्तर पर कर रहा है। सन् 1965 में केरल में सङ्गीत मर्मज्ञ बालाजी ताम्बे द्वारा स्थापित किए गए ‘आत्मसन्तुलन विलेज’ ने भी म्यूजिक थेरेपी की दिशा में महत्त्वपूर्ण काम किया है। इस संस्थान में आयुर्वेद के साथ मरीज़ों पर राग चिकित्सा का भी इस्तेमाल किया जाता है। जबलपुर में कलावर्धन अकादमी के ज़रिये डॉ. भास्कर खाण्डेकर पिछले क़रीब दो दशक से सङ्गीत चिकित्सा का सफलतापूर्वक प्रयोग कर रहे हैं। दिल्ली स्थित बॉडी माइण्ड क्लीनिक भी पिछले क़रीब पाँच वर्षों से सङ्गीत का इस्तेमाल चिकित्सा में कर रहा है। स्वामी सच्चिदानन्द मूर्ति बँगलूरु में अपना एक केंद्र चला रहे हैं। उनका अनुभव है कि कुछ राग या रागों के मिश्रण हृदय रोग, अस्थमा, ब्लड प्रेशर जैसे रोगों में रामबाण जैसा असर दिखा रहे हैं। भोपाल के सरकारी अस्पताल हमीदिया में सङ्गीत चिकित्सा का प्रयोग किया जा रहा है और अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। मुम्बई में पं. शशाङ्क पट्टी ने सुर सञ्जीवन अनुसन्धान केन्द्र बनाया है, जहाँ कई वर्षों से रागों पर आधारित उपचार पद्धतियों पर काम हो रहा है। मद्रास का विपञ्ची केन्द्र, सङ्गीतौषध अनुसन्धान केंद्र के साथ कई संस्थानों और सङ्गीतज्ञों के कामों के चलते अब धीरे-धीरे हमारे अस्पतालों की रुचि इस तरफ़ बढ़ी है और वे म्यूजिक थेरेपी को भी आज़माने लगे हैं।

बच्चों को बनाइए सङ्गीत प्रेमी

अमेरिका के बेथ इज़रायल मेडिकल सेण्टर तथा लुइस आर्मस्ट्राङ्ग सेम्टर फॉर मुयूजिक एण्ड मेडिसिन ने 272 बच्चों पर एक संयुक्त अध्ययन किया। नतीजा मिला कि कुछ ख़ास तरह का सङ्गीत, ख़ासतौर से गीतों की गुनगुनाहट बच्चों के विकास में काफ़ी कारगर है। बच्चों के सोने, जागने और उनकी कार्यक्षमता में बेहतरी पाई गई। लोरी एक तरह से बच्चों के लिए म्यूजिक थेरेपी ही है। म्यूजिक थेरेपी अभिभावकों को भी तनाव से दूर रखने में मददगार है। हाल ही में इङ्ग्लैंड के बाउर्ने माउथ युनिवर्सिटी और क्वानस युनिवर्सिटी बेलफास्ट ने अपने अध्ययनों में पाया है कि म्यूजिक थेरेपी से बच्चों और किशोरों, दोनों में व्यवहारगत और मानसिक परेशानियाँ घटती हैं और शारीरिक और मानसिक स्तर पर उनका व्यवहार सन्तुलित होता है, सेहत दुरुस्त होती है। नॉर्दन आयरलैंड म्यूजिक थेरेपी ट्रस्ट की अगुआई में ये शोध आठ से सोलह साल के आयुवर्ग पर किए गए।

आयुर्वेद की नज़र में

आयुर्वेद के अनुसार शरीर को स्वस्थ या अस्वस्थ रखने के लिए त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ में सन्तुलन या असन्तुलन ज़िम्मेदार है। सङ्गीत इन त्रिदोषों को सन्तुलित रखने में काफ़ी कारगर है। मनुष्य शरीर में सवेरे के समय कफ, दोपहर के समय पित्त और शाम के समय वात का प्रभाव प्रबल रहता है। ऐसे में जो लोग इन समयों के अनुसार निर्धारित किए गए विभिन्न राग या इन पर आधारित गीत सुनते हैं, उनके त्रिदोषों में सन्तुलन की स्थिति बेहतर बनी रहती है और वे जल्दी बीमारियों की चपेट में नहीं आते।

सेहत सुधारेंगे फ़िल्मी गाने

फ़िल्मी गानों पर अक्सर लोग नाक-भौं सिकोड़ते मिल जाते हैं, पर अनगिनत गीत ऐसे सुरों में साधकर बनाए गए हैं कि उन्हें सुनना आपकी सेहत को बेहतर बना सकता है। तमाम शोध साबित कर चुके हैं कि भारतीय सङ्गीत के अनेकानेक राग सेहत पर सकारात्मक असर डालते हैं। ऐसे में जो भी फ़िल्मी गीत रागों पर आधारित हैं, उनका भी असर सेहत पर पड़ेगा ही। आम लोगों के लिए ख़ास यह है कि फ़िल्मी गानों से उनका मानसिक जुड़ाव आसानी से बन जाता है तो वे इसका फ़ायदा भी रोगों के हिसाब से आसानी से ले सकते हैं। कुछ रोगों के लिए कुछ गीतों की एक सूची कुछ यों बनाई जा सकती है –

– गठिया, उच्च रक्तचाप, एसीडिटी और हाज़मा ख़राब हो तो राग अहीर भैरव सुनना फ़ायदा पहुँचाता है। इस पर आधारित गीत हैं–‘अलबेला साजन आयो रे’ (हम दिल दे चुके सनम), ‘गुनगुना रहे हैं भँवरे गली-गली’ (आराधना), ‘दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा’ (अमानुष), ‘राम तेरी गङ्गा मैली हो गई’ (राम तेरी गङ्गा मैली), ‘सोलह बरस की बाली उमर को सलाम’ (एक दूजे के लिए)। एसीडिटी, अपच और पेट की गड़बड़ियों में राग दीपक भी फ़ायदा पहुँचाता है।

– अनिद्रा और वात विकार के रोगियों को राग मालकौंस सुनना चाहिए। ‘ओ पवन वेग से उड़ने वाले घोड़े’, ‘आधा है चन्द्रमा रात आधी’…जैसे गीत इसी राग पर आधारित हैं। पूरिया धनश्री राग के गाने अनिद्रा के साथ-साथ रक्ताल्पता में भी लाभकारी हैं। ‘रङ्ग और नूर की बारात किसे पेश करूँ’, ‘कितने दिनों के बाद ये आई सजना रात मिलन की’…जैसे गीत इसी राग पर हैं। राग भैरवी या सोहनी राग पर आधारित गाने भी अनिद्रा में लाभकारी हैं। ‘दिल का खिलौना हाय टूट गया’ (गूँज उठी शहनाई) व ‘छम छम बाजे रे पायलिया’ (घूँघट) इस पर आधारित हैं।

– डिप्रेशन, उदासीनता, तनाव आदि मनोरोगों में राग बिहाग, राग मधुवन्ती व कल्याणी सुनने पर लाभ मिलता है। ‘तुम तो प्यार हो सजना’ (सेहरा), ‘तेरे सुर और मेरे गीत’ (गूँज उठी शहनाई ), ‘मतवारी नार ठुमक-ठुमक चली जाए’ (आम्रपाली)…आदि गाने सुने जा सकते हैं।

– उच्च रक्तचाप में धीमी गति और निम्न रक्तचाप में तीव्र गति के गीत सुनने चाहिए। उच्च रक्तचाप में राग भोपाली के ‘चन्दा है तू मेरा सूरज है तू’ (आराधना), ‘चल उड़ जा रे पञ्छी’ (भाभी) ‘चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो’ (पाकीजा), ‘पङ्ख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ बालमा’ (सेहरा), ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ (जिस देश में गङ्गा बहती है)..जैसे विलम्बित गाने सुने जा सकते हैं।

– अस्थमा यानी साँस की समस्या में भक्ति वाले गीत सुनें तो ज़्यादा फ़ायदेमन्द होता है। राग मालकौंस और राग ललित भी इसमें उपयोगी हैं। ‘मन तरपत हरि दर्शन को’ (बैजू बावरा), ‘तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ’ (नवरङ्ग), ‘रैना बीती जाए श्याम न आए’ (अमर प्रेम), ‘आधा है चन्द्रमा रात आधी’ (नवरङ्ग) वगैरह उपयोगी हैं।

– दिल के रोगों में राग दरबारी तथा राग सारङ्ग पर आधारित गाने लाभप्रद सिद्ध हुए हैं। मसलन, ‘मैं तेरे दर पे आया हूँ कुछ करके जाऊँगा’ (लैला मजनूँ), ‘बस्ती बस्ती परबत परबत गाता जाए बञ्जारा’ (रेलवे प्लेटफार्म), ‘ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले’ (बैजू बावरा), ‘पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे, तोरा मन दर्पण कहलाए’ (काजल), ‘राधिके तूने बंसरी चुराई’ (बेटी-बेटे)..आदि।

– जिनकी याददाश्त कमज़ोर हो, उन्हें राग शिवरञ्जनी पर आधारित गाने सुनने चाहिए। इस राग के कुछ गाने हैं–‘न किसी की आँख का नूर हूँ’ (लालकिला), ‘मेरे नैना सावन भादों’, (महबूबा), ‘बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है’ (सूरज), ‘जाने कहाँ गए वो दिन’ (मेरा नाम जोकर)।

– सिरदर्द सताए या काम की थकान हो तो शान्त भाव से राग भैरव या राग देस सुनें। ‘किसी नजर कोतेरा इन्तजार आज भी है’ (ऐतबार), ‘मोहे भूल गए साँवरिया’ (बैजू बावरा), ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई’ (मेरी सूरत तेरी आँखें), ‘जागो मोहन प्यारे’ (जागते रहो) जैसे गाने सुने जा सकते हैं।

– कमज़ोरी, ख़ून की कमी में राग जय-जयवन्ती पर आधारित गाने सुनना बेहतर होगा। कुछ गाने ये हैं–‘मोहब्बत की राहों में चलना सँभल के’ (उड़न खटोला), ‘तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का न हो सकेगा’ (बीस साल बाद), ‘साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं’ (साज और आवाज़)।

तब सुनिए पसन्दीदा गीत

सङ्गीत भी पसन्द का न हो तो सिरदर्द दे सकता है, इसलिए दिनचर्या के कुछ ख़ास मौक़ों पर पसन्दीदा गीत आपके मन-मस्तिष्क को सुकून दे सकते हैं और रोज़मर्रा के कामों में ऊब से बचा सकते हैं।

– सामान्य व्यायाम या वर्कऑउट करते समय हल्की धुनों वाले पसन्द के गीत सुनने चाहिए। व्यायाम में मन लगा रहेगा।

– योग के आसन करते समय भक्ति सङ्गीत या ओङ्कार चैण्टिङ्ग सुनना बेहतर है। शवासन या ध्यान के समय कोई भी सङ्गीत नहीं सुनना चाहिए।

– जब कोई मेहनत का काम करते-करते थक जाएँ तो पसन्दीदा गीत-सङ्गीत सुनें। यह किसी भी बीट का सङ्गीत हो सकता है। मनोरञ्जन तो होगा ही, थकान भी कम होगी।

– रसोई में काम करते समय या सामान्य घरेलू काम करते समय महिलाएँ पसन्द का सङ्गीत सुनें तो बेहतर है।

– रात में सोने से पहले हल्की धुन वाले गीत आपको नींद के आगोश में बेहतर ढङ्ग से पहुँचाने में मदद कर सकते हैं। सङ्गीत के माध्यम से शरीर में मौजूद ट्राइटोफन नामक रसायन अवसाद को दूर करते हैं।

– अगर आप चिन्ता में हों तो भी मधुर सङ्गीत आपको राहत दे सकते हैं। किसी ने दिल दुखाया हो तो गीत भले दुख वाले हों, पर पसन्द के हों तो आपको काफ़ी तसल्ली दे सकते हैं।

म्यूजिक थेरेपी के लिए यहाँ जा सकते हैं–

– राग रिसर्च सेण्टर, आर. ए. पुरम, चेन्नई

– आत्मसन्तुलन विलेज, ओल्ड पूना-मुम्बई हाइवे, केरल

– साईं बालाजी विद्यापीठ, पिलैयारकुप्पम, पाम्डिचेरी

– बॉडी एण्ड माइण्ड क्लीनिक, ग्रीनपार्क एक्सटेंशन, दिल्ली

– टीडीएमसी म्यूजिक थेरेपी मेडिटेशन हीलिङ्ग एण्ड वेलनेस सेंटर, सफदरजङ्ग एन्क्लेव, दिल्ली

– बोवेन थेरेपी सेण्टर, वसन्त कुञ्ज, दिल्ली – कलावर्धन, जबलपुर

(दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ से साभार, सन्त समीर)

सन्त समीर

लेखक, पत्रकार, भाषाविद्, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्येता तथा समाजकर्मी।

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