देश-दुनियाराजनीति

केजरीवाल की गिरफ़्तारी और भाजपा की मंशा

बात तो तब होती, जबकि सत्ता में शामिल कुछ नेताओं-मन्त्रियों पर भी ईडी की तलवार लटकती दिख रही होती। योगी जी के बुलडोज़र को पढ़े-लिखे समझदार मुसलमानों ने भी समर्थन किया, तो उसकी वजह यही थी कि मुसलमानों पर बुलडोज़र चला तो हिन्दू भी उससे बचे नहीं थे। मस्ज़िदों पर बुलडोज़र चलाने पर ओवैसी जैसे लोग हाय-तौबा भले कर रहे थे, पर समझदार मुसलमान उनके बहकावे में नहीं आया तो इसीलिए कि वह देख रहा था कि बुलडोज़र अतिक्रमण करके बनाए गए मन्दिरों पर भी चल रहे थे। ऐसे ही, विपक्षियों को गिरफ़्तार करने के साथ-साथ कुछ सत्ता पक्ष वाले भ्रष्टाचारी भी जेल के भीतर पहुँचाए जाते तो लोग सवाल करने के बजाय वाह-वाह कर रहे होते।

सवेरे घर से निकला तो गन्तव्य आते-आते जितने भी लोगों की प्रतिक्रियाएँ सुनने को मिलीं, उनमें से ज़्यादातर ने यही कहा कि इस बार भाजपा के लिए ‘400 पार’ सचमुच आसान बन रहा था, पर अब इसे आसान कह पाना ज़रा मुश्किल है। लगता है इस पार्टी ने अब ख़ुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का तय कर लिया है। कई अच्छे और देश का मान बढ़ाने वाले फ़ैसलों के चलते जनता का जो समर्थन मिला, उससे शायद भाजपा के लोगों को भ्रम हो गया है कि अब वे कुछ अनाप-शनाप भी कर गुज़रेंगे तो जनता उसे स्वीकार कर लेगी। किसी ज़माने में काँग्रेस को भी ऐसा भ्रम हुआ था और लोगों ने एक दिन वह सबक़ सिखाया कि आज उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। यह एक सच्चाई है कि मोदी और योगी की जोड़ी में लोग बनते-बढ़ते और सँवरते भारत का चेहरा देखने लगे थे, जो कई वजहों से ठीक भी था, पर जब भाजपा ने ‘400 पार’ के नारे को चरितार्थ करने की जल्दबाज़ी में ख़ुद को नालायक़ और भ्रष्ट साबित कर चुके लोगों से भी गलबहियाँ करनी शुरू कर दी, तो लोगों के मन में भी किन्तु-परन्तु पैदा होने लगे। भाजपा के नेताओं को समझ में नहीं आया कि जनता के लिए पार्टी नहीं, बल्कि मोदी-योगी का चेहरा ही भरोसे के लिए पर्याप्त था। एकबारगी लग सकता है कि बीते कुछ दिनों में दूसरी पार्टियों के जिस तरह के लोग भाजपा में शामिल हुए हैं, उससे भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ेगा और ‘400 पार’ का नारा आसान हो जाएगा, पर एक बड़ी सच्चाई यह है कि मोदी-योगी की वजह से राजनीति में शुचिता का जो भरोसा बन रहा था, वह इन गठजोड़ों की वजह से कमज़ोर होने लगा है। आज़ादी के बाद से राजनीति में पहली बार ऐसा होना शुरू हुआ है कि लोग जातियों के दायरे भूलकर मोदी-योगी की जोड़ी का समर्थन करने लगे हैं। मोदी जी ने जब यह कहा कि मेरे लिए देश में सिर्फ़ चार जातियाँ हैं—ग़रीब, युवा, महिलाएँ और किसान—तो देश की जनता को, ख़ासतौर से नई पीढ़ी को अच्छा लगा था और उम्मीद जगने लगी कि शायद अब देश धीरे-धीरे जातिवादी राजनीति से ऊपर उठेगा और सही मायने में राष्ट्रनिर्माण का काम शुरू होगा। लेकिन, पारम्परिक जातिवादी राजनीति में रमे रहे लोगों के साथ गठजोड़ करके भाजपा ने अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के बजाय कमज़ोर करने का काम किया है।

गड़बड़ियाँ कई हैं, पर ताज़ा गड़बड़ी ईडी द्वारा अरविन्द केजरीवाल की गिरफ़्तारी है। ऐसा नहीं है कि जनता केजरीवाल को साफ़-पाक मान रही है। लोग कह ही रहे हैं कि भ्रष्टाचार तो हुआ ही होगा, पर सवाल यह भी लोग कर रहे हैं कि क्या सत्ता वाले सारे नेता-मन्त्री एकदम से दूध के धुले हैं! मोदी-योगी जैसे कुछ शीर्ष के लोगों को लोग भले ईमानदार मानते हैं, पर अन्य अनेक पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप हैं। आज जब मैं लोगों से बात कर रहा हूँ तो एक साधारण व्यक्ति यही कह रहा है कि केजरीवाल ने भले सौ-दो सौ करोड़ का भ्रष्टाचार किया हो, पर उसे सबक़ केवल विरोधी होने की वजह से सिखाया जा रहा है, जबकि केजरीवाल से कई-कई गुना बड़े भ्रष्टाचार के आरोपी सत्तासुख भोगने की तैयारी कर रहे हैं।

बात तो तब होती, जबकि सत्ता में शामिल कुछ नेताओं-मन्त्रियों पर भी ईडी की तलवार लटकती दिख रही होती। योगी जी के बुलडोज़र को पढ़े-लिखे समझदार मुसलमानों ने भी समर्थन किया, तो उसकी वजह यही थी कि मुसलमानों पर बुलडोज़र चला तो हिन्दू भी उससे बचे नहीं थे। मस्ज़िदों पर बुलडोज़र चलाने पर ओवैसी जैसे लोग हाय-तौबा भले कर रहे थे, पर समझदार मुसलमान उनके बहकावे में नहीं आया तो इसीलिए कि वह देख रहा था कि बुलडोज़र अतिक्रमण करके बनाए गए मन्दिरों पर भी चल रहे थे। ऐसे ही, विपक्षियों को गिरफ़्तार करने के साथ-साथ कुछ सत्ता पक्ष वाले भ्रष्टाचारी भी जेल के भीतर पहुँचाए जाते तो लोग सवाल करने के बजाय वाह-वाह कर रहे होते।      

बात साफ़ है कि केजरीवाल सचमुच के भ्रष्ट हों तो भी जनमानस ऐसा ही बन रहा है कि सत्तापक्ष की मंशा ठीक नहीं है। इस मौक़े पर गिरफ़्तारी भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए नहीं, बल्कि सबक़ सिखाने और अपने रास्ते का कण्टक हटाने की मंशा से की गई है। इससे भाजपा के पक्ष में आम अवाम का जो समर्थन तेज़ी से बढ़ रहा था, वह घटेगा। भाजपा के पुराने समर्थक एक सज्जन ने तो केजरीवाल की गिरफ़्तारी पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि यह तो हद ही हो गई। और कि अब भाजपा को वोट देने का उनका मन बिलकुल नहीं कर रहा है, भले की किसी ऐरे-ग़ैरे को दे दें।

भाजपा के नेताओ और कार्यकर्ताओ! बात समझो। राम का काम करने के बाद क्षमाभाव में रहने की ज़रूरत थी और निर्वैर भाव से भ्रष्टाचार मुक्ति के काम को आगे बढ़ाना था। मेरे जैसे व्यक्ति भी चाहते हैं कि इस बार भाजपा चार सौ पार ही नहीं, इससे भी शानदार विजय हासिल करे, क्योंकि विपक्ष को ठीक से सबक़ मिलना चाहिए कि अब बग़ैर सुधरे काम नहीं चलेगा। मुझे यह भी अच्छा लग रहा था कि हज़ार साल से सहमे-सहमे भाव में जीते आए हिन्दुओं की चेतना अब अँगड़ाई ले रही है और उनके भीतर का डर समाप्त हो रहा है। हिन्दुत्व के उभार को मैं इस रूप में नहीं देख रहा हूँ कि मुसलमान ख़तरे में पड़ जाएँगे। उल्टे मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि हिन्दू संस्कृति का उभार ठीक से हो जाए तो मुसलमान या दूसरी तमाम क़ौमें इस देश में और सुरक्षित और आज़ाद जीवन जी पाएँगी, क्योंकि हिन्दुत्व की मूल संस्कृति मार-काट वाली है ही नहीं। हिन्दुओं को यह आश्वस्ति मिल जाए कि अब उन्हें दूर-दूर तक किसी धर्म-मज़हब से कोई ख़तरा नहीं है तो वे किसी प्रतिक्रियावादी सङ्गठन को समर्थन देंगे ही नहीं। याद रखना चाहिए कि डेढ़ हज़ार साल पहले जब मुग़ल आक्रमणकारियों के आने का कोई मसला नहीं था तो उस समय मुहम्मद साहब के जीवनकाल में अरब के बाहर संसार की पहली मस्ज़िद भारत में ही बनी। हिन्दुओं ने सदाशयता में बनाकर इसे मुसलमानों को सौंपा था, ताकि व्यापार के लिए आने वाले मुसलमान भी अपने पूजा-पाठ के काम अच्छे से कर सकें। 

बहरहाल, केजरीवाल के मामले में ठीक से काम नहीं किया गया तो दिल्ली में सभी सात सीटें जीतने के भाजपा के सपने पर पानी भी फिर सकता है। एक बड़ी बात यह हो रही थी कि भाजपा के लिए लोग बेहतरी की उम्मीद में भरपूर जोश के साथ वोट करने का मन बना रहे थे, पर अब एक बहुत बड़ी सङ्ख्या जोश के बजाय मजबूरी में सिर्फ़ इसलिए वोट करेगी कि विपक्ष में विराट् शून्यता है। हो सकता है, एनडीए चार सौ पार का आँकड़ा हासिल कर ले, पर आज के जनमानस से यही लग रहा है कि अब उसकी जीत कम वोटों से होगी या चार सौ पार करना मुश्किल हो जाएगा। भाजपा की कुछ मूर्खताओं ने जनता का दिल तोड़ने का काम किया है। ऐसे में, यदि विपक्षी गठबन्धन को कुछ ज़्यादा सीटें मिल गईं तो यह भी देश का दुर्भाग्य ही होगा, क्योंकि आज की तारीख़ में विपक्ष में मुझे ऐसा कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहा, जिससे कि राष्ट्र का कोई बड़ा हित हो। विपक्ष के संस्कार बदले नहीं हैं और वह वही राजनीति करेगा, जिस राजनीति से देश का बेड़ा ग़र्क़ हुआ। जो भी हो, कल को अगर अरविन्द केजरीवाल का अपराध इतना बड़ा साबित हो जाय कि ईडी की कार्रवाई को लोग शाबाशी देने लगे तो तब की बात तब पर! (सन्त समीर)

सन्त समीर

लेखक, पत्रकार, भाषाविद्, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्येता तथा समाजकर्मी।

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