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मोदी जी फ़ार्मूला सुनिए, सीटें बढ़ जाएँगी

यह मैं कोई हवा में नहीं कह रहा हूँ। ज़मीन पर रहता हूँ और ज़मीनी लोगों की बातें सुनता-समझता हूँ। आम जनता का एक बड़ा हिस्सा, जो पिछले कुछ समय से मोदी जी की वाह-वाह करने लगा था, अब कसमसाहट में है। कई लोग तो यहाँ तक कहने लगे हैं कि अब वे किसी ऐरे-ग़ैरे को भले वोट दे देंगे, पर भाजपा को न देंगे। भाजपा वाले इस बात को शायद समझ नहीं पा रहे हैं और चार सौ पार करने के चक्कर में कुछ बड़ी ग़लतियाँ कर रहे हैं।

इच्छाएँ भी अजब-ग़ज़ब होती हैं। कई बार पता होता है कि पूरी नहीं होंगी, फिर भी मन है कि ख़यालों के पुलाव पकाता रहता है। जैसे कि इन दिनों की एक मौसमी इच्छा मेरी भी है। यह कि इस बार मोदी जी पूरे देश में चार सौ पार नहीं, बल्कि साढ़े चार सौ पार पहुँचें, पर दिल्ली में इनके लोगों की ज़मानत ज़ब्त हो जाए।

देश में मोदी जी को क्यों साढ़े चार सौ पार पहुँचना चाहिए और दिल्ली में क्यों ज़मानत ज़ब्त होनी चाहिए, इसकी व्याख्या अभी नहीं करूँगा, पर यह क़तई न समझें कि केजरीवाल जी से मेरी कोई सहानुभूति है या कि उन्हें आजकल परेशान किया जा रहा है, इसलिए मैं ऐसी इच्छा व्यक्त कर रहा हूँ।

मुझे एहसास है कि आज की तारीख़ में मेरी इच्छा का एक भी हिस्सा पूरा होने नहीं जा रहा, पर यह ज़रूर लगता है कि कुछ समय पहले, पहले वाले हिस्से के पूरा होने की गुञ्जाइश ठीक-ठाक थी। जिस समय मोदी जी ने कहा था ‘अबकी बार चार सौ पार’, उस समय इस बात के बेहतर सङ्केत थे। थोड़ी समझदारी दिखाई होती तो चार सौ पार की बात और आगे बढ़ सकती थी, पर मोदी जी की इच्छा को गारण्टीशुदा ढङ्ग से पूरा करने की जल्दबाज़ी में भाजपा के योजनाकारों ने नीति कुछ यों बनाई कि दूसरों के पैरों पर कुल्हाड़ी चला-चलाकर उन्हें लँगड़ा कर दो तो वे कमज़ोर होकर ठीक से लड़ने लायक़ ही नहीं रह जाएँगे। इन्हें कौन समझाए कि भाई राजनीति की यह कुल्हाड़ी छटक-छटक कर तुम्हारे भी सिंहासन के पायों को काट-छाँटकर कमज़ोर कर रही है।

यह मैं कोई हवा में नहीं कह रहा हूँ। ज़मीन पर रहता हूँ और ज़मीनी लोगों की बातें सुनता-समझता हूँ। आम जनता का एक बड़ा हिस्सा, जो पिछले कुछ समय से मोदी जी की वाह-वाह करने लगा था, अब कसमसाहट में है। कई लोग तो यहाँ तक कहने लगे हैं कि अब वे किसी ऐरे-ग़ैरे को भले वोट दे देंगे, पर भाजपा को न देंगे। भाजपा वाले इस बात को शायद समझ नहीं पा रहे हैं और चार सौ पार करने के चक्कर में कुछ बड़ी ग़लतियाँ कर रहे हैं। चार सौ पार नहीं हो पाया, तो चुनाव बाद इन ग़लतियों पर शायद हल्की-फुल्की निगाह पड़े, पर अगर चार सौ पार का लक्ष्य मिल गया तो जीत की ख़ुमारी में भाजपाइयों के लिए समझ पाना मुश्किल होगा कि वे जितना आगे जा सकते थे, अपनी छोटी-छोटी मूर्खताओं की वजह से उससे पहले ही रुक गए।

अभी का इण्टरव्यू सुना तो लगा कि मोदी जी ने ‘डैमेज कण्ट्रोल’ की कुछ कोशिश की है, पर इतने से कितना काम बनेगा, कुछ कहा नहीं सकता। मुझे लगता है कि फ़ार्मूला आसान है और अभी भी भाजपा अपने पक्ष में माहौल और मज़बूत बना सकती है। फ़ार्मूले को आसान इसलिए कह रहा हूँ कि इसमें ज़्यादा उठा-पटक करने की ज़रूरत ही नहीं है। एकदम ईमानदार फ़ार्मूला। इस फ़ार्मूले का पता मुझे है, पर है यह जनता का फ़ार्मूला। जनता के मन में जो उतर पाए, उसके लिए फ़ार्मूले को समझना ज़रा भी कठिन नहीं है। यह वही फ़ार्मूला है, जिसे कभी आम आदमी पार्टी को मैंने बताय था और जिस पर चलकर केजरीवाल जी ने दिल्ली में दूसरी बार और बड़ा बहुमत हासिल किया था। यहाँ पर अचानक आपके मन में आ सकता है कि मैं शायद कोई व्यङ्ग्य लेख लिख रहा हूँ, पर वास्तव में मैं गम्भीर हूँ, व्यङ्ग्य जैसी कोई बात नहीं।

असल में जब पहली बार सरकार बनाने के बाद केजरीवाल जी दिल्ली की गद्दी सँभाल नहीं पाए और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा, तो उस वक़्त उन्होंने मुझसे मुलाक़ात की इच्छा जताई थी और बुलावा भेजा था। उनके सन्देश में यह था कि आम आदमी पार्टी मेरे वायरल हुए खुले ख़त पर कुछ काम करना चाहती है। मैं गया और जिस मुख्यमन्त्री आवास पर विवाद उठा था, उसी के परिसर में मेरी अरविन्द केजरीवाल जी से आधे या पौन घण्टे की मुलाक़ात हुई थी। उन्हें मैंने कुछ सुझाव दिए थे। मेरे खुले ख़त और सुझावों के आलोक में केजरीवाल जी ने काम किया और जनता ने दूसरी बार उन्हें जैसा शानदार बहुमत देकर सिर-आँखों पर बैठाया, वह कल्पना से भी बाहर की बात थी। उनके एक मन्त्री और मेरे पुराने मित्र गोपाल राय मुझे चुनाव भी लड़वाना चाहते थे और मेरी पसन्द का इलाक़ा तक मुझसे पुछवाया था। मुझे एहसास था कि उस लहर में चुनाव तो जीत ही जाऊँगा, पर मेरी मानसिकता नेता बनने की कभी रही नहीं। अलबत्ता, किसी को नेता बनाना हो तो उसमें सहयोग ज़रूर कर सकता हूँ।

 ख़ैर, केजरीवाल जी के बारे में बाद के दिनों में वह पङ्क्ति ज़्यादा चरितार्थ होने लगी, जिसमें मैंने कहा था कि ‘साधना कम हो और शोहरत ज़्यादा मिल जाए तो सँभालना ज़रा मुश्किल होता है’। आम जन के मन को टटोलते हुए मैंने जो खुला ख़त (आम आदमी पार्टी के विधायकों के नाम खुला ख़त—25 दिसम्बर, 2013) लिखा था और जिसे प्रो. आनन्द कुमार जैसे तमाम प्रबुद्ध लोगों ने ‘राजनीति की गीता’ तक की सञ्ज्ञा दी थी, उसे केजरीवाल जी ने ज़्यादा दिनों तक याद रखने की ज़रूरत नहीं समझी और अब हम देख रहे हैं कि वे ‘डिलिवरी मैन’ से ज़्यादा नहीं रह गए हैं।  

बस उसी तरह का सौ टका ईमानदारी वाला और एकदम आसान-सा फ़ार्मूला मेरे पास मोदी-योगी की जोड़ी के लिए भी है। यह फ़ार्मूला मोदी और योगी पर ही काम करेगा, इसका भाजपा नाम की पार्टी से ज़्यादा लेना-देना नहीं है, इसलिए बताऊँगा भी तो मोदी या योगी में से ही किसी को या दोनों को। अगर किसी या किन्हीं में दम हो कि इस फ़ार्मूले को मोदी-योगी की जुगल-जोड़ी तक पहुँचा सकें तो मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं।

सचमुच मज़ाक़ वाली बात नहीं है। खाँटी जनता जनार्दन के मन से निकला फ़ार्मूला है, आज़माया हुआ है। आज के हाल में भी तीस-चालीस या इससे भी अधिक सीटें हँसते-खेलते भी अतिरिक्त दिलवा सकता है। फ़ार्मूला अखिलेश यादव और राहुल गान्धी के लिए भी है, पर उन्हें कुछ समय तक लगातार काम करना होगा। जो भी हो, उम्मीद है मित्रगण यह आरोप तो नहीं ही लगाएँगे कि मैंने भाजपा के लिए फ़ार्मूले की दुकान खोल रखी है। (सन्त समीर)

सन्त समीर

लेखक, पत्रकार, भाषाविद्, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्येता तथा समाजकर्मी।

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