‘पञ्चायत’ और ‘लापता लेडीज़’ तारीफ़ के क़ाबिल तो हैं
इसे देखना हो तो बस देखना शुरू कर दें और किसी से कहानी के बारे में कुछ न पूछें। कसी हुई कहानी, अच्छा निर्देशन और हर कलाकार अपने किरदार में फिट। हँसाती-गुदगुदाती फ़िल्म ज़िन्दगी के कुछ ज़रूरी मायने भी समझाती चलती है। यह कोई ‘पॉज़िटिव थिङ्किङ्ग’ के मुद्दे पर बनी फ़िल्म नहीं है, पर हौसला बनाए रखने की सीख दे जाती है। कहना पड़ेगा, सुखान्त हो तो ऐसा।
कई बार अललटप्प में कुछ अच्छी चीज़ें निगाह में आ जाती हैं। किसी के मुँह से एक दिन सुना ‘पञ्चायत’ और इस तरह मेरी निगाह पड़ी ‘पञ्चायत’ नाम की वेब सीरीज़ पर। गाँव से जुड़ाव की वजह से इसे देखने लगा तो दो बैठकी में दो सीज़न के सारे एपीसोड देख डाले। अच्छा लगा। आज के गाँवों की बहुत हद तक यथार्थ तसवीर इसमें दिखाई देती है। पूरी टीम की मेहनत क़ाबिलेतारीफ़ है। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की कई बारीक़ियाँ निर्देशक ने अच्छे से पकड़ी हैं। संयोग ही है कि पहली बार कोई वेब सीरीज़ देखी और निराश नहीं होना पड़ा। अमेज़ॉन प्राइम पर सीज़न-3 की रिलीज़ तारीख़ शायद 28 मई है। इन्तज़ार रहेगा।
दूसरी अललटप्प में देखी गई कोई वेब सीरीज़ नहीं, बल्कि एक फ़िल्म है, जिसे मैं शानदार कहूँगा। शनिवार के दिन कहीं जाने का कार्यक्रम रदद् हुआ तो टीवी के सामने बैठ गया। शायद नेटफ़्लिक्स था, जहाँ स्क्रीन पर चमका—लापता लेडीज़। यहाँ भी गाँव जैसा कुछ दिखा तो सोचा कि चलो पाँच-दस मिनट देख लेते हैं। शुरू किया तो देखता ही गया। सच कहूँ तो अरसे बाद कोई शानदार फ़िल्म देखी। सीधी-सादी कहानी है, पर ट्विस्ट पर ट्विस्ट इतने कि आप आगे की कहानी का अनुमान नहीं लगा पाएँगे। इसे देखना हो तो बस देखना शुरू कर दें और किसी से कहानी के बारे में कुछ न पूछें। कसी हुई कहानी, अच्छा निर्देशन और हर कलाकार अपने किरदार में फिट। हँसाती-गुदगुदाती फ़िल्म ज़िन्दगी के कुछ ज़रूरी मायने भी समझाती चलती है। यह कोई ‘पॉज़िटिव थिङ्किङ्ग’ के मुद्दे पर बनी फ़िल्म नहीं है, पर हौसला बनाए रखने की सीख दे जाती है। कहना पड़ेगा, सुखान्त हो तो ऐसा।
बाद में ध्यान दिया तो पता चला कि इसे आमिर ख़ान की पूर्व पत्नी किरण राव ने बनाया है। अगर सचमुच पूरा निर्देशन किरण राव का है तो उनकी प्रतिभा का लोहा मानना पड़ेगा। (सन्त समीर)