अनायासराजनीति

जस्टिस शेखर कुमार यादव का सही-ग़लत

कल्पना कीजिए कि नरेन्द्र मोदी जैसे ताक़तवर नेता को अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान या किसी भी अन्य मुस्लिम राष्ट्र की नागरिकता देकर वहाँ रहने को कह दिया जाए तो क्या होगा। सोचकर देखिए कि क्या वे वहाँ रहते हुए हिन्दुओं के पक्ष में खुलेआम बोल पाएँगे! ठीक इसके उलट, भारत में औवैसी जैसे हज़ारों मुसलमान नेता मुसलमानों के पक्ष में बोलने की तो बात ही अलग, बहुसङ्ख्यक हिन्दुओं के ख़िलाफ़ भी खुलेआम बोलते रहते हैं।

जो वीडियो मैंने सुना है, उसके हिसाब से मेरी समझ में यह बात अभी तक नहीं आई है कि जस्टिस शेखर कुमार यादव ने क्या-क्या ग़लत बोला है। यह ज़रूर मानता हूँ कि अगर मुसलमान-विरोधी के तौर पर उन्होंने कुछ बोला हो तो वह सरासर ग़लत है, एकपक्षीय है, लेकिन अगर उन्होंने सच के एहसास के भाव से बोला है तो फिर ग़लत जैसा तो कुछ लगा नहीं। सपा वाले शायद यादव बिरादरी का ख़याल करके शान्त हैं, पर अन्य जो लोग विरोध का झण्डा उठाए फिर रहे हैं, उनमें से कुछ के घरों के बारे में मुझे भी कुछ-कुछ पता है और उनके यहाँ भी ठीक वैसा ही होता रहा है, जैसा जस्टिस यादव ने कहा है। और यदि, हिन्दू-मुसलामान के पहलू से देखें तो कभी के ग़ैर-मुस्लिम और धीरे-धीरे मुस्लिम बहुल होते गए 57 देशों में बहुसङ्ख्यकवाद ही चल रहा है। कई देशों में तो स्थिति डरावनी है। पूरी दुनिया में एकमात्र भारत है, जहाँ अल्पसङ्ख्यक अपनी बात एकदम खुलकर रखते आए हैं। मज़ेदार है कि जो लोग लोकतन्त्र को ख़तरे में देखते हैं, वे भी अक्सर लोकतन्त्र की सीमाएँ लाँघकर पेट भर गरियाने का सुख लेते दिखाई देते रहे हैं। कल्पना कीजिए कि नरेन्द्र मोदी जैसे ताक़तवर नेता को अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान या किसी भी अन्य मुस्लिम राष्ट्र की नागरिकता देकर वहाँ रहने को कह दिया जाए तो क्या होगा। सोचकर देखिए कि क्या वे वहाँ रहते हुए हिन्दुओं के पक्ष में खुलेआम बोल पाएँगे! ठीक इसके उलट, भारत में औवैसी जैसे हज़ारों मुसलमान नेता मुसलमानों के पक्ष में बोलने की तो बात ही अलग, बहुसङ्ख्यक हिन्दुओं के ख़िलाफ़ भी खुलेआम बोलते रहते हैं। यह भारत ही है, जहाँ नारा लगाते-लगाते सिर तन से जुदा कर भी दिया जाता है। हर समझदार मुसलमान जानता है कि भारत में यदि गङ्गा-जमुनी संस्कृति और लोकतन्त्र की स्थिति अभी तक क़ायम है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ सनातन या कहें हिन्दुत्व की संस्कृति की वजह से। दुर्भाग्य से समझधार सेक्युलर बिरादरी को यह सब समझ में नहीं आता। (सन्त समीर)

सन्त समीर

लेखक, पत्रकार, भाषाविद्, वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के अध्येता तथा समाजकर्मी।

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